आजादी के बाद से भारत में सरकारो ने आर्थिक व्यवस्था को सुधारने के लिए कई कदम उठाए. उसमें से कर प्रणाली को लागू करने का उनका पहला निर्णय था. अगर सर्विस टैक्स कि बात करे तो भारत में इसकी शुरुआत 1994 में हुई थी, और यह देश की आर्थिक नीतियों में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक माना जाता है. इसे कांग्रेस सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की देखरेख में लागू किया गया. इसका उद्देश्य सेवा क्षेत्र से राजस्व जुटाना और आर्थिक सुधारों को गति देना था.
अर्थव्यवस्था में सुधार पर ध्यान केंद्रित
1990 के दशक में भारत की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट का सामना कर रही थी. वैश्विक मुद्रा कोष (IMF) से मदद लेने और आर्थिक सुधारों को अपनाने की जरूरत थी. इन्ही सारी जरुरतों को पुरा करने के लिए सेवा क्षेत्र को औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनाना आवश्यक हो गया.
डॉ. मनमोहन सिंह ने 1994-95 के केंद्रीय बजट में सर्विस टैक्स की शुरुआत की घोषणा की. शुरू में इसे केवल तीन सेवाओं जैसे टेलीफोन, स्टॉक ब्रोकर, और जनरल इंश्योरेंस पर लागू किया गया था. उस समय सर्विस टैक्स की दर केवल 5% थी.
भारतीय राजस्व में सकारात्मक योगदान
शुरुआती वर्षों में सर्विस टैक्स से होने वाली आय सीमित थी, लेकिन जैसे-जैसे सेवाओं की श्रेणियां बढ़ाई गईं, इसका योगदान बढ़ने लगा. हालांकि इस सेंचुरी के पहले दशक तक, यह भारतीय राजस्व संग्रह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका था.
हालांकि, सर्विस टैक्स की शुरुआत के साथ ही आलोचना भी शुरू हो गई. विपक्षी दलों ने इसे मध्यम वर्ग और छोटे व्यापारियों पर अतिरिक्त बोझ के रूप में देखा. कई लोगों का मानना था कि यह अप्रत्यक्ष करों की श्रृंखला को और अधिक जटिल बना देगा.
अप्रत्यक्ष कर प्रणाली
सर्विस टैक्स ने देश में अप्रत्यक्ष कर प्रणाली के लिए एक मजबूत आधार तैयार किया. 2017 में, जब वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू किया गया, तो सर्विस टैक्स को इसमें शामिल कर लिया गया.
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