Budget 2025: भारत समेत अधिकांश देशों में बजट घाटे का होना आम बात है. देश की आजादी के बाद से ही भारत में घाटे का बजट पेश किया गया है. इसके पीछे मुख्य कारण सरकार की आर्थिक नीतियां और लोक कल्याणकारी योजनाओं के लिए अधिक खर्च का प्रावधान है.
घाटे का बजट क्या है
घाटे का बजट वह स्थिति है, जब सरकार की आय उसकी खर्च की योजना से कम होती है. इसे ‘घाटे की वित्त व्यवस्था’ कहा जाता है. जब सरकार को शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे और अन्य कल्याणकारी योजनाओं में निवेश के लिए ज्यादा धनराशि की आवश्यकता होती है, तो वह इस तरह का बजट पेश करती है.
भारत में 2022-23 के बजट में राजस्व घाटा देश की GDP का 6.4 परसेंट रहने का अनुमान था, जबकि 2021-22 में यह संशोधित अनुमान 6.9 परसेंट था. भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर वित्त वर्ष 2024-25 में 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है. यह आंकड़े बताते हैं कि देश की आय और व्यय के बीच बड़ा अंतर है, जो अर्थव्यवस्था को संतुलित करने की चुनौती पेश करता है.
आजादी के बाद का पहला बजट
आजादी के बाद भारत का पहला बजट 15 अगस्त 1947 से 31 मार्च 1948 तक के लिए पेश किया गया. इस बजट में 171 करोड़ रुपये की राजस्व प्राप्ति और 197 करोड़ रुपये के अनुमानित खर्च का प्रावधान था. तब से लेकर आज तक घाटे का बजट भारत की वित्तीय रणनीति का हिस्सा बना हुआ है.
घाटे के बजट फायदे
घाटे का बजट कई लोक कल्याणकारी योजनाओं और आर्थिक विकास को गति देने में सहायक होता है. बुनियादी ढांचे का विकास, रोजगार सृजन और गरीब तबकों के लिए कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च, सरकार की प्राथमिकता होती है. हालांकि, इसके साथ ही कर्ज बढ़ने का खतरा भी बढ़ता है. अधिक कर्ज लेने से देश की वित्तीय स्थिरता पर दबाव पड़ता है, जो महंगाई और ब्याज दरों में वृद्धि का कारण बन सकता है.
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