पश्चिम बंगाल की ट्रांसजेंडर बनीं असिस्टेंट प्रोफेसर, जानें कैसे पांच साल में हासिल की मंजिल

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पश्चिम बंगाल की एक ट्रांसजेंडर महिला ने अपनी कड़ी मेहनत और संघर्ष से वह मुकाम हासिल किया है, जिसका सपना उसने हमेशा देखा था. सुमना प्रमाणिक कृष्णनगर की रहने वाली हैं. उन्होंने राज्य सरकार की तरफ से आयोजित की जाने वाली परीक्षा को पास कर लिया है, जो उन्हें विश्वविद्यालय या कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने योग्य बनाती है. सुमना ने हमेशा से मैथ्स के शिक्षक बनने का सपना देखा था और अब इस सफलता ने न केवल उनके समुदाय, बल्कि समाज को भी एक मजबूत संदेश दिया है कि ट्रांसजेंडर लोग सिर्फ ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांगने के लिए नहीं होते.

पांच साल की मेहनत अब लाई रंग 

सुमना ने 2019 से स्टेट एलिजिबिलिटी टेस्ट (SET) में हिस्सा लेना शुरू किया था, लेकिन इस साल उन्हें सफलता मिली. सुमना का मानना है कि उनकी यह सफलता एक बड़ा संदेश देती है, जो यह साबित करती है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति केवल कुछ खास पेशों के लिए ही नहीं बने होते, बल्कि उनके पास भी बौद्धिक क्षमता होती है और वे किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल कर सकते हैं. सुमना ने इस बात को साझा किया कि उन्होंने जीवन भर अपने लिंग के कारण रीजेक्शन का सामना किया, लेकिन अब उनकी यह सफलता उन सभी रीजेक्शन के लिए एक करारा जवाब है. 

छह साल की उम्र में भेजा गया था अनाथालय 

सुमना का जन्म बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था और बचपन से ही उन्हें अनादर और असहमति का सामना करना पड़ा. छह साल की उम्र में ही उन्हें एक अनाथालय भेज दिया गया था. उन्होंने अपनी पढ़ाई जगन्नाथ हाई स्कूल से शुरू की और फिर कबी विजयलाल हाई स्कूल और श्री कृष्ण कॉलेज, बागुला में पढ़ाई किया. इसके बाद कल्याणी विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएशन किया और बर्धमान यूनियन क्रिश्चियन कॉलेज से बी.एड. किया.

फ्री में पढ़ा ट्यूशन

सुमना ने हमेशा अपनी पढ़ाई और शिक्षिका बनने की चाह को अपने जीवन का उद्देश्य माना. हालांकि, जैसे-जैसे वह बड़ी होती गईं, उनके रिश्तेदारों ने उन्हें थोड़ी बहुत जो मदद दी थी, वह भी धीरे-धीरे कम होती गई. एक ट्यूटर, जो उन्हें मुफ्त में पढ़ाता था, ने सुमना को उनकी ट्रांसजेंडर पहचान को लेकर समझाया और कहा कि उन्हें अपनी महिला पहचान को छोड़ देना चाहिए. उसने ही सुमना को एक काउंसलर से मिलने के लिए प्रेरित किया, जिसने उन्हें समझाया कि वह किसी भी पुरुष या महिला से कम नहीं हैं, बल्कि जिन्हें उनकी आलोचना कर रहे हैं, उन्हें काउंसलिंग की जरूरत है.

काउंसलिंग से मिली मदद 

काउंसलर के शब्द सुमना को काफी सहायक लगे, लेकिन बाहर की दुनिया में उसे दयनीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ा. बावजूद इसके, सुमना का कहना है कि उनका सपना हमेशा से शिक्षक बनने का था, और उन्होंने मैथ्स को इसलिए चुना क्योंकि स्कूल में एक अच्छे मैथ्स टीचर ने उन्हें प्रेरणा दी थी. SET परीक्षा में सफलता हासिल कर सुमना के आंसू छलक पड़े, और उन्होंने पांच साल के संघर्ष के बाद अपनी मंजिल पा ली.

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