झांसी की वीरांगना के नाम पर स्थापित रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (आरएलबीसीएयू) बुंदेलखंड क्षेत्र में कृषि शिक्षा का प्रमुख केंद्र बन चुका है. इसकी स्थापना 2014 में संसद के अधिनियम द्वारा हुई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य बुंदेलखंड जैसे सूखा-ग्रसित क्षेत्र में कृषि शिक्षा और रिसर्च को बढ़ावा देना था. झांसी में स्थित यह विश्वविद्यालय भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन कार्य करता है.
ऐसे होता है यूनिवर्सिटी में एडमिशन
विश्वविद्यालय में प्रवेश पाना छात्रों के लिए प्रतिष्ठा का विषय है. स्नातक कार्यक्रमों के लिए प्रवेश मुख्य रूप से अखिल भारतीय कृषि प्रवेश परीक्षा (ICAR-AIEEA UG) के माध्यम से होता है, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा आयोजित किया जाता है. स्नातकोत्तर और पीएचडी कार्यक्रमों के लिए ICAR-AIEEA PG और ICAR-AICE JRF/SRF (PhD) परीक्षाओं के माध्यम से प्रवेश दिया जाता है. वही कुछ कोर्सेज में दाखिला सीयूईटी (कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट) के जरिए होता है. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए सरकारी नियमों के अनुसार आरक्षण का प्रावधान है.
ये कोर्स पढ़ाए जाते हैं यूनिवर्सिटी में
वर्तमान में विश्वविद्यालय कई पाठ्यक्रम प्रदान करता है. स्नातक स्तर पर बीएससी (ऑनर्स) कृषि, बीएससी (ऑनर्स) बागवानी, बीएससी (ऑनर्स) वानिकी, बीटेक (कृषि इंजीनियरिंग) और बीएससी (ऑनर्स) खाद्य प्रौद्योगिकी जैसे कार्यक्रम उपलब्ध हैं. स्नातकोत्तर स्तर पर कृषि विज्ञान, बागवानी, कृषि इंजीनियरिंग और अन्य संबंधित क्षेत्रों में एमएससी और पीएचडी कार्यक्रम प्रदान किए जाते हैं.
अलग-अलग कोर्स की ये है फीस
फीस संरचना की बात करें तो बैचलर्स कोर्सेज के लिए प्रति सेमेस्टर लगभग 13,000 से 16,000 रुपये तक है, जबकि मास्टर्स कोर्सेज के लिए यह लगभग 18,000 से 25,000 रुपये प्रति सेमेस्टर है,वही PhD की फीस 28,000 रुपये प्रति सेमेस्टर निर्धारित है. छात्रावास, मेस और अन्य सुविधाओं के लिए अतिरिक्त शुल्क देना पड़ता है. आईसीएआर छात्रवृत्ति और अन्य सरकारी छात्रवृत्तियों के माध्यम से योग्य छात्रों को वित्तीय सहायता भी प्रदान की जाती है, जिससे शिक्षा किफायती बनती है.
कई प्रतिष्ठित कृषि वैज्ञानिक और अधिकारी पढ़ चुके हैं इस यूनिवर्सिटी से
इस विश्वविद्यालय से कई प्रतिष्ठित कृषि वैज्ञानिक और अधिकारी निकले हैं. डॉ. राजेश कुमार सिंह, जो अब भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं, ने यहां से अपनी शिक्षा पूरी की और सूखा-प्रतिरोधी फसलों पर अपने शोध के लिए अंतरराष्ट्रीय पहचान प्राप्त की. डॉ. सुनीता यादव, जो वर्तमान में एक प्रमुख कृषि-स्टार्टअप की संस्थापक हैं, ने विश्वविद्यालय से कृषि व्यवसाय प्रबंधन में अपनी डिग्री हासिल की और अब हजारों किसानों को रोजगार प्रदान कर रही हैं.
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