Ramadan 2025: रमजान के रोजे देते हैं सामाजिक समरसता का संदेश, इबादत का मिलता है कई गुना ज्यादा फल

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Ramadan 2025: ‘दस्ते तलब बढ़ाओ कि रमज़ान आ गया, जिस मुबारक महीने का इंतजार दुनियाभर के मुसलमान पिछले कई दिनों से कर रहे थे, वह हमारे देश भारत में शुरू हो चुका है. रमजान को बरकतों और फजीलतों का महीना कहा जाता है. लिहाजा इस महीने का इस्लाम धर्म में बेहद खास महत्व है. इस्लामिक धार्मिक ग्रंथ कुरान ए पाक इसी मुबारक महीने में नाजिल हुई थी.

रमजान में मुसलमानों की दिनचर्या

रमजान को इबादत का महीना भी कहा जाता है. इस महीने में हर आस्थावान मुस्लिम परिवार की दिनचर्या बदल जाती है. सुबह तीन बजे उठना, ताजा भोजन पकाना, विशेष प्रातः भोज सहरी खाना और खिलाना, दुआएं पढ़ना, तिलावते कुरान शरीफ करना, नमाजे फजिर पढ़ना और सूर्योदय तक सो जाना अगले तीस दिनों की दिनचर्या बन जाती है.

रमजान का पूरा महीना इबादत में गुजरता है. दिन में पांच वक्त के अलावा रात को तरावीह की विशेष नमाज अदा की जाती है. दोपहर को आराम करने के बाद इफ्तार की फिक्र होती है. इफ्तार यानी दिनभर रोजा रखने के बाद सूर्यास्त के कुछ देर बाद उस दिन के रोजा पूरा करने का आयोजन, यह आयोजन तीन प्रकार से होता है. तेरह चौदह घंटे रोजा रखने के दौरान कुछ भी खाना पीना नहीं होता. 

इफ्तार की तीन किस्में

इफ्तार की पहली किस्म व्यक्तिगत रूप है, यानी अपने घर में अपने ही घर में परिवार के सदस्यों के साथ रोज़ा खोलना. इनमें दादा-दादी, चाचा-चाची, बुआ, भाई-बहन और परिवार के दूसरे सदस्य शामिल होते हैं. यहां छोटे बड़े, औरत-मर्द, बुज़ुर्गी और कमसिनी आदि का भेदभाव मिट जाता है. एक साथ एक ही जगह दस्तरख्वान पर बैठकर रोजा खोलने से पारिवारिक एकता, आपसी सहमति, विश्वास और प्रेम भाव का विकास होता है.
दूसरी किस्म इफ़्तार पार्टी कहलाती है. यानी स्वयं के घर पर, सार्वजनिक स्थल पर, होटल, गेस्ट हाउस आदि में ढेर सारे लोगों को बुलाकर रोजा खुलवाना. इसमें आयोजक को एक स्थान पर बैठे-बैठे अपने अनन्त कोटि के दोस्तों, रिश्तेदारों और शुभ चिंतकों से मुलाक़ात का मौका मिल जाता है. यह प्रक्रिया सरल लेकिन थोड़ी खर्चीली भी है.
तीसरी किस्म मस्जिद, दरगाहों, इमामबाड़ों आदि रोज़ा खोलने के स्थानों पर इफ्तारी भिजवाना, यहां नमाजी और रोजेदारों की बहुतायत होती है. सबको बराबर मात्रा में इफ्तारी के बन्द पैकेट बांटे जाते हैं. यहां छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, काले-गोरे समेत वर्ण व्यवस्था का भेदभाव मिट जाता है.

रमजान में इबादत करने के अधिक अवसर मिलते हैं. इस पाक महीने में जहां तक संभव हो झूठ बोलने, धोखा देने, बेईमानी करने से बचना चाहिए. रमजान संगीत से दूरी बनाए रखने की हिदायत देता है. अमीर-गरीब का फर्क मिटाता है. करोड़पति और उसका नौकर एक साथ एक ही पंक्ति में खड़े होकर नमाज पढ़ते और रोजा खोलते हैं. कहा जाता है कि इस पाक महीने में की गई इबादत का फल यानी सवाब कई गुना ज्यादा हासिल होता है. 

रोजा रखना हर मुसलमान पर फर्ज यानी जरूरी है. हालांकि बच्चों और बीमार लोगों को इससे छूट मिली हुई है. रमजान के महीने में फितरा और जकात को भी जरूरी बताया गया है. इस्लाम में यह भी कहा गया है कि रमजान के पाक महीने में किए गए गुनाहों की कतई माफी नहीं होती. पूरे तीस रोजे के बाद खुशियों का त्योहार ईद आता है. रमजान के महीने में रोजे रखने का वैज्ञानिक महत्व भी है. 

हमारे शहर और देश में हर वर्ग, वर्ण जाति व संप्रदाय के लोगों को इफ्तार पार्टी में बुलाने की परंपरा कायम है. राजनेता-अधिकारी, व्यापारी वर्ग सभी इस अवसर पर इकट्ठा होकर आपसी समझ के साथ आगे बढ़ते हैं और देश में अमन, शान्ति की बहाली और चहुंमुखी विकास की दुआएं मांगते हैं. खुदा से दुआ है कि हमारा मुल्क गंगा जमुनी तहजीब पर कायम रहे और हम सभी इसे आगे बढ़ाने का नेक नीयती के साथ प्रयास करते रहे.

Note: लेखक- हाजी सैयद अज़ादार हुसैन, इस्लामिक स्कॉलर. हाजी सैयद अज़ादार हुसैन, इस्लामिक स्कॉलर और प्रयागराज की दरगाह मौला अली प्रबंध समिति के चेयरमैन है. यह शिक्षक और एक इंटर कॉलेज में प्रिंसिपल रहे हैं. 

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