Ramadan 2025 Day 7: माह-ए-रमजान का मुबारक महीना मुसलमानों के लिए सभी 12 महीनों में सबसे खास महत्व रखता है. रमजान का पूरा महीना इबादत, पश्चाताप, उपवास (रोजा), आध्यात्मिक प्रहति और उदारता को समर्पित होता है. साथ ही यह महीना खुद को बेहतर बनाने में भी मदद करता है.
रोजा में अन्न-जल का त्याग करने की प्रक्रिया सिर्फ भूखे रहने का नाम न होकर समग्र रूप से अल्लाह को तलाशने का काम भी है. रमजान महीने में संयम और समर्पण के साथ रोजेदार रोजा रखकर खुदा की इबादत करते हैं. खाने-पीने सहित दुनियाभर की तमाम आदतों पर संयम किए जाने वाले रोजा को ही अरबी में ‘सोम’ कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है रोजा रखकर इंद्रियों को वश में करना.
रमजान के दौरान मुसलमान तरावीह और नमाज पढ़ते हैं, जिसमें बार-बार अल्लाह का जिक्र होता है. इससे रोजेदारों का ना सिर्फ शरीर बल्कि आत्म भी शुद्ध होती है. हर इंसान गलतियों का पुतला होता है और इन्हीं गलतियों को सुधारने और गलतियों से तौबा करने का रमजान सुनहरा अवसर होता है. इसलिए इन दिनों रोजा रखने और इंद्रियों पर संयम रखने के साथ ही जकात देने का भी खास महत्व है. जकात वह होता है जिसमें एक व्यक्ति अपनी कमाई का ढाई प्रतिशत हिस्सा गरीबों में बांटता है.
सातवां रोजा क्यों है महत्वपूर्ण
फिलहाल रमजान में रोजा रखने का सिलसिला अब सातवें रोजे तक पहुंच चुका है. सातवें रोज तक रोजेदार संयम सत्कर्म को अपनाते हुए बेशुमार नेकियों का हकदार हो जाता है.नेकियों के सैलाब का जरिया ही रोजेदारों को अल्लाह से जोड़ती है. इसलिए कहा जाता है कि रमजान का सातवां रोजा अल्लाह तक पहुंचने का मार्ग दिखाता है.
कुरान से 30वें पारे की सूरह अलइन्किशाक की आयत 6 में जिक्र मिलता है कि, ‘या अय्युहल इन्सानु इन्नाका कादिहुन इला रब्बेला कदहन फमुलाकीह’. इसका अर्थ है कि ऐ इंसान तू अपने परवरदिगार की ओर पहुंचने की खूब कोशिश करता है सो उससे जा मिलेगा.
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