डिप्रेशन और शराब पीने की लत से परेशान थीं पूजा भट्ट, इन गंभीर बीमारियों से ऐसे खुद को निकाला

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अपने जमाने की जानी मानी एक्ट्रेस पूजा भट्ट ने शराब की लत और डिप्रेशन से किस तरह बाहर निकली हैं. उस संघर्ष को लेकर खुलकर बात की है. पूजा ने अपनी जिंदगी के उस काले पन्ने के बारे में राज उजागर किया है. पूजा भट्ट बताती हैं कि 16 साल की उम्र में उन्होंने शराब पीना शुरू कर दिया था और शराब को अपनी “पसंदीदा दवा” मानती थीं. उन्होंने कहा है कि उन्होंने 24 दिसंबर, 2016 को 44 साल की उम्र में शराब पीना छोड़ दिया.

पूजा भट्ट को ऐसे लगी शराब की लत

 भट्ट ने कहा है कि वह शराब की लत की चपेट में इसलिए आईं क्योंकि उनके पिता महेश भट्ट भी इससे जूझ रहे थे. उन्होंने यह भी कहा है कि वह शराब की लत से जुड़ी कलंक को तोड़ना चाहती थीं और दूसरों को अपने संघर्षों के बारे में खुलकर बताने के लिए प्रेरित करना चाहती थीं. भट्ट और उनके पिता ने शराब की लत से जुड़े अपने अनुभव को भी शेयर किया है. पूजा भट्ट कहती हैं कि यह बात एकदम झूठ है कि डिप्रेशन सिर्फ अमीर लोगों को होता है. यह किसी को भी हो सकता है. अगर किसी भी व्यक्ति को ऐसा महसूस हो तो उसके अपने परिवार के सदस्य से खुलकर बात करनी चाहिए. 

डिप्रेशन को लेकर WHO की रिपोर्ट

डिप्रेशन में घिरा व्यक्ति हमेशा उदास रहता है. वह हमेशा अपनी ही उलझन से उलझा हारा हुआ महसूस करता है. अवसाद से पीड़ित व्यक्ति में आत्मविश्वास की भारी कमी दिखती है. WHO की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल पूरी दुनिया में 70 लाख लोग आत्महत्या करते हैं. इनमें से हर 8 में से एक डिप्रेशन की वजह से सुसाइड करते हैं. बता दें कि डिप्रेशन एक मानसिक बीमारी है और यह सालों साल लोगों को परेशान करती है. सबसे बड़ी चिंता ये है कि कई मामलों में तो इंसान को पता ही नहीं होता है कि वो डिप्रेशन में है.

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डिप्रेशन एक तरह की मेंटल बीमारी है

डिप्रेशन कितनी खतरनाक है आप इससे पता कर सकते हैं जब व्यक्ति परेशान होकर एक दिन वह सुसाइड कर लेता है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल आखिर कोई अपनी ही जान क्यों ले लेता है? डिप्रेशन एक तरह की मेंटल बीमारी है. हर उम्र के लोग इस समस्या से जूझ रहे हैं. डिप्रेशन के शिकार लोग सुसाइड सबसे ज्यादा करते हैं. डिप्रेशन धीरे-धीरे शरीर में पनपती है और डर, चिंता और घबराहट के साथ इसकी शुरुआत होती है.

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हर किसी को अपनी लाइफ में कभी न कभी उदासी या घबराहट महसूस होती है. हफ्ते में ऐसा एक या दो बार भी हो सकता है लेकिन अगर ये चिंता, डर और उदासी हर दिन कई-कई घंटे तक बना रहता है तो ये डिप्रेशन होता है. इसकी वजह से बॉडी लैंग्वेज और कामकाज पूरी तरह प्रभावित होने लगता है. डिप्रेशन एक दिन नहीं बल्कि लंबे समय तक चलने वाली समस्या है. जब ब्रेन में मौजूद न्यूरोट्रांसमीटर सही तरह फंक्शन नहीं करता तब डिप्रेशन की स्थिति पैदा होती है.

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें. 

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