अमेरिका ने उड़ाई ग्लोबल ट्रेड के नियमों की धज्जियां, शुरू हुई 10 परसेंट बेसलाइन टैरिफ की वसूली

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US Baseline Tariff: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया के सभी देशों पर 10 परसेंट का बेसलाइन टैरिफ लगाया है, जो शनिवार आधी रात से लागू हो गया. इसके चलते अमेरिकी कस्टम अधिकारियों ने 5 अप्रैल से इसकी वसूली शुरू कर दी. इसी के साथ भारत, चीन, वियतनाम जैसे 57 देशों पर इससे भी ज्यादा टैरिफ लगाया गया है, जो 9 अप्रैल से लागू हो जाएगा. 

10 परसेंट बेसलाइन टैरिफ की वसूली शुरू

ट्रंप का 10 परसेंट बेसलाइन टैरिफ अमेरिकी बंदरगाहों, एयरपोर्ट्स और कस्टम वेयरहाउसों पर कल सुबह 12 बजे ईटी (भारतीय समयानुसार सुबह 09:31) से लागू हो गया. इसके साथ ही ट्रंप ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आपसी सहमति से तय हुए टैरिफ रेट्स के सिस्टम को पूरी तरह से नकार दिया.

बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, होगन लवेल्स में ट्रेड लॉयर और ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान व्हाइट हाउस की पूर्व व्यापार सलाहकार केली एन शॉ ने कहा, यह हमारे अब तक के जीवनकाल में हुआ सबसे बड़ा ट्रेड एक्शन है. 

टैरिफ में बदलाव लाने की भी उम्मीद

शॉ ने गुरुवार को ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन के एक इवेंट में कहा कि उन्हें उम्मीद है कि वक्त के साथ टैरिफ में भी बदलाव आएगा क्योंकि कई देश टैरिफ दरों को कम करने के लिए अमेरिका संग बातचीत करने की तैयारी में है. उन्होंने कहा, यह धरती पर हर देश के साथ व्यापार करने के हमारे तरीके में एक बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण बदलाव है.

ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ ने मचाई हलचल

ट्रंप ने बुधवार 2 अप्रैल को जैसे ही रेसिप्रोकल टैरिफ का ऐलान किया वैसे ही दुनियाभर के शेयर मार्केट्स में हलचल मच गई. नतीजतन शुक्रवार को S&P 500 की कंपनियों का टोटल मार्केट वैल्यूएशन 5 ट्रिलियन डॉलर तक घट गया, जो कि दो दिनों में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है. इधर, क्रूड ऑयल और दूसरे कमोडिटीज की कीमतों में भी गिरावट आई. निवेशक भी सुरक्षित निवेश के लिए गोल्ड और बॉन्ड्स की तरफ  भागते नजर आए. 

बेसलाइन टैरिफ का सबसे पहले इन पर असर

बता दें कि ट्रंप के बेसलाइन टैरिफ की गाज सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, ब्राजील, कोलंबिया, अर्जेंटीना और सऊदी अरब जैसों देशों पर पड़ेगा. पिछले साल अमेरिका के साथ इनका व्यापार घाटा बहुत ज्यादा था. व्हाइट हाउस के अधिकारियों का कहना है कि अगर टैरिफ पॉलिसी निष्पक्ष होती तो अमेरिका के साथ कई दूसरे देशों को भी घाटा होता. 

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