प्रेग्नेंसी के 8 वें महीने में महिला हुई ब्रेन डेड का शिकार, परिवार वालों ने लिया ये बड़ा फैसला

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दिल्ली की रहने वाली 38 साल की अशिता चांडक 8 महीने की प्रेग्नेंट थीं. इस दौरान उन्हें स्ट्रोक पड़ गया. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक महिला को जब स्ट्रोक पड़ा और जब उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया तो डॉक्टर ने उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया. जिसके बाद समय से पहले सिजेरियन के जरिए महिला की डिलीवरी की गई है. और वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया. बच्ची तो बच गई. अब परिवार वाले चाहते थे कि मां भी जल्दी ठीक हो जाए. 13 फरवरी को अशिता को डॉक्टर ने बचाने की काफी कोशिश कर दी लेकिन डॉक्टर ने हाथ खड़े कर दिए जिसके बाद बताया गया कि बहू अब ठीक नहीं हो सकती है. 

गम में डूबे ससुर जी ने मान ली डॉक्‍टर की बात

जब डॉक्टरों ने महिला को ब्रेन डेड घोषित कर दिया था.  इसके बाद परिवार वालों से डॉक्टर ने बात की और उन्हें अंगदान के लिए उनसे बात की. डॉक्टर और परिवार वालों के बीच बात होने के बाद  महिला का ऑर्गन को डोनेट कर दिए गए ताकि दूसरे लोगों की जान बचाई जा सके. परिवार वाले इससे समहमत हो गए. इसके बाद मेडिकल टीम से  प्रत्यारोपण प्रक्रियाओं के लिए दोनों किडनी, लिवर और कॉर्निया निकाल लिए.

7 फरवरी को बहू को आया था स्ट्रोक

अशिता जॉब करती थीं. वह एक प्राइवेट कंपनी में कस्टमर सपोर्ट मैनेजर थीं. अशिता के ससुर राजेश रामपाल ने बताया कि 7 फरवरी को बहू को स्ट्रोक आया था. जिसके बाद वेंटिलेटर पर रखकर उन्हें सी-सेक्शन के जरिए एक बच्ची को जन्म दिया . लेकिन वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत पड़ी. बेटा राजुल रामपाल एक कंपनी में बिजनेस डेवलपमेंट एग्जीक्यूटिव है. शादी के 6 साल बाद बहू प्रेग्नेंट हुई थी. 

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ब्रेन डेड को लेकर क्या है कानून?

कानून के मुताबिक स्पेशलिस्ट की एक टीम कोई व्यक्ति ब्रेन डेड है या नहीं इसको लेकर अंतिम निर्णय लेती है. सबकुछ चेक करने के बाद किसी व्यक्ति ब्रेन डेड घोषित किया जाता है. जिसके बाद ऑर्गन डोनेट को लेकर फैमिली वालों से बात की जाती है. उनकी सहमति के बाद प्रोसेस को आगे बढ़ाया जाता है. ऑर्गन डोनेट में दिल, किडनी, लिवर और अग्नाश्य कर सकते हैं. हार्ट डोनेट 55-60 साल तक ही किया जा सकता है. 

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