पाकिस्तान का मुल्तान शहर जहां 5 हजार साल पहले था भव्य और दिव्य हिंदू मंदिर

हैरी ब्रूक ने पाकिस्तान के खिलाफ पहले टेस्ट में तिहरा शतक बनाकर इतिहास रच दिया. ‘मुल्तान’ का ये वही मैदान है जहां ठीक बीस बरस पहले यानि 2004 में वीरेंद्र सहवाग ने पाकिस्तान के खिलाफ तिहरा शतक लगाया था. अब हैरी ब्रूक भी इस लिस्ट में शामिल हो गए हैं. 

हैरी ब्रूक पाकिस्तान की टीम के खिलाफ तिहरा शतक लगाने वाले विश्व के पांचवें बल्लेबाज बन गए है. हैरी ब्रूक के इस शानदार प्रदर्शन के बाद उन्हें ‘मुल्तान’ का सुल्तान कहा जा रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जहां ये टेस्ट मैच खेला जा रहा है, इसका इतिहास भव्य है. इस जगह से हिंदू, सिख और सूफी धर्म से क्या नाता है. आइए जानते हैं-

मुल्तान के बारे में
मुल्तान पाकिस्तान का सातवां सबसे बड़ा शहरा है. मुल्तान पंजाब प्रांत का एक सूबा है. विभाजन के बाद बड़ी संख्या में मुल्तान से भारत से आए जो दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में आज भी रह रहे हैं. इतिहास के पन्नों में झाकें तो पाएंगे कि ये मुल्तान वही है जहां 1175 में मुहम्मद गोरी ने अपना पहला आक्रमण किया था. यहीं से वो गुजरात दाखिल हुआ.

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मुल्तान से हिंदु धर्म से नाता
हिंदु धर्म की कई निशानियां आज भी मुल्तान में मौजूद है. इतिहास के पन्ने पलटने से पता चलता है कि पाकिस्तान के मुल्तान में हिंदु धर्म की जड़ें कितनी गहरी थीं. मुल्तान में पांच हजार साल पहले कृष्ण और जाम्बवती के पुत्र सांबा ने एक सूर्य मंदिर बनवाया था. सांबा कुष्ठरोग से पीड़ित था, जिससे निजात पाने के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया था. इस मंदिर को ‘आदित्य सूर्य मंदिर’ भी कहा जाता था, यहां पर भगवान आदित्य की अत्यंत सुंदर मूर्ति थी. इस मंदिर की भव्यता की चर्चा बहुत दूर तक थी. भविष्यपुराण और स्कंदपुराण में इसका वर्णन मिलता है.

ऐसा भी मान्यता है कि मुल्तान को पहले कश्यपपुरा कहा जाता था. इतिहासकार ग्रीक एडमिरल स्काईलेक्स अपनी एक किताब में सूर्य मंदिर का जिक्र करते हैं. कहते है कि चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने 641 ईस्वी में मंदिर का दौरा किया था. उसने इस मंदिर की सुंदरता का बड़े ही रोचक ढंग से वर्णन किया था. यहां पर रत्न और सोने से बनी भगवान भास्कार की मूर्ति को देखकर ह्वेन त्सांग बेहद प्रभावित हुआ. ह्वेन त्सांग बताता हैं कि सूर्य मंदिर में हजारों हिंदू श्रद्धालु नियमित रूप से सूर्य देव की पूजा करने के लिए आते थे.

8 वीं शताब्दी में मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के बाद ऐसा माना जाता है कि सूर्य मंदिर मुस्लिम शासक के लिए आय का बहुत बड़ा स्रोत बन गया था. मुहम्मद बिन कासिम ने मंदिर के पास एक मस्जिद का भी निर्माण कराया. 

11 वीं शताब्दी में इतिहासकार अल बेरुनी ने भी मुल्तान की यात्रा कि और सूर्य मन्दिर के बारे में जिक्र किया, जिसे बाद में पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया और इसका कभी पुनर्निर्माण नहीं हुआ. कहते हैं कि 10 वीं शताब्दी के अंत में मुल्तान के नए राजवंश इस्माइली शासकों द्वारा सूर्य मंदिर को नष्ट कर दिया.

सूफी धर्म और मुल्तान
मुल्तान शुरू से ही पीर और सूफी संतों का गढ़ रहा है. शम्स तबरेज (मखदूम शाह शमसुद्दीन) ने सूफी धर्म का खूब प्रचार प्रसार किया. उस समय के कट्टर मुसलमानों को शम्स तबरेज का सूफी हो जाना पसंद नहीं आया और उसकी खाल उतार कर उसे मौत के घाट उतार दिया. शम्स तबरेज का मकबरा आज भी मुल्तान में स्थित है और मई के महीने में आज भी मेला लगता है. जहां सूफी मत को मनाने वाले बड़ी संख्या में आते हैं. 
कहते हैं कि गुरु नानक देव भी मुल्तान आए थे और शम्स तबरेज के स्थान पर गए. यहां से नानक देव जी 1530 में करतारपुर आ गए.

सुहरावर्दी सिलसिला का भारत में सबसे पहले प्रचार करने वाले बहाउद्दीन जकारिया का जन्म भी मुल्तान के कोट अंगेर में 1182 में हुआ था. कह सकते हैं कि मुल्तान और हिंदुस्तान का नाता बहुत पुराना है. मुल्तान के बारे में एक कहावत जो आज भी प्रसिद्ध है- “चार चीज अज मुल्तान, गर्द, गर्मी, फकीर ओ कब्रिस्तान.” यानि मुल्तान की चार चीज आंधी, गर्मी, पीर-फकीर और कब्रिस्तान बहुत प्रसिद्ध है. मुल्तान में अनगिनत कब्र और दरगाहें हैं. इसे संतों का शहर भी कहा जाता है.

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