Jaya Ekadashi 2025: जया एकादशी व्रत से मिलता है 10 पीढ़ियों को मोक्ष, बस कर लें ये काम

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Jaya Ekadashi 2025: जया एकादशी का व्रत 8 फरवरी 2025 को है. ये माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी होगी. इस दिन व्रत, दान, श्रीहरि की पूजा करने वालों के पितृ, कुयोनि को त्याग कर स्वर्ग में चले जाते हैं, एकादशी व्रत करने वाले की पितृ पक्ष की दस पीढियां, मातृ पक्ष की दस पीढियां और पत्नी पक्ष की दस पीढियां भी बैकुण्ठ प्राप्त करती हैं.

इस एकादशी व्रत के प्रभाव से संतान, धन और कीर्ति बढ़ती है ऐसी पौराणिक मान्यता है. एकादशी व्रत करने वालों को जया एकादशी व्रत की कथा का श्रवण करना चाहिए तभी इसका फल प्राप्त होता है.

जया एकादशी व्रत कथा

एक बार देवताओं के राजा इन्द्र, नन्दन वन में भ्रमण कर रहे थे. गान्धर्व गायन कर रहे थे तथा गन्धर्व कन्यायें नृत्य कर रही थीं. वहीं पुष्पवती नामक गन्धर्व कन्या ने माल्यवान नामक गन्धर्व को देखा तथा उस पर आसक्त होकर अपने हाव-भाव से उसे रिझाने का प्रयास करने लगी. माल्यवान भी उस गन्धर्व कन्या पर आसक्त होकर अपने गायन का सुर-ताल भूल गया. इससे संगीत की लय टूट गयी तथा संगीत का समस्त आनन्द क्षीण हो गया.

सभा में उपस्थित देवगणों को यह अत्यन्त अनुचित लगा. यह देखकर देवेन्द्र भी रूष्ट हो गये. क्रोधवश इन्द्र ने पुष्पवती तथा माल्यवान को श्राप दे दिया – “संगीत की साधना को अपवित्र करने वाले माल्यवान और पुष्पवती! तुमने देवी सरस्वती का घोर अपमान किया है, अतः तुम्हें मृत्युलोक में जाना होगा. ब तुम अधम पिशाच असंयमी के समान जीवन व्यतीत करोगे।.

देवेन्द्र का श्राप सुनकर वे दोनों अत्यन्त दुखी हुये तथा हिमालय पर्वत पर पिशाच योनि में दुःखपूर्वक जीवनयापन करने लगे. एक दिन उस पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा पिशाच योनि से नरक के दुःख सहना अधिक उत्तम है.” भगवान की कृपा से एक समय माघ के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी के दिन इन दोनों ने कुछ भी भोजन नहीं किया तथा न ही कोई पाप कर्म किया.

उस दिन मात्र फल-फूल ग्रहण कर ही दिन व्यतीत किया तथा महान दुःख के साथ पीपल के वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे. दूसरे दिन प्रातः काल होते ही प्रभु की कृपा से इनकी पिशाच योनि से मुक्ति हो गयी तथा पुनः अपनी अत्यन्त सुन्दर अप्सरा एवं गन्धर्व की देह धारण करके तथा सुन्दर वस्त्रों एवं आभूषणों से अलङ्कृत होकर दोनों स्वर्ग लोक को चले गये.

माल्यवान ने कहा – “हे देवताओं के राजा इन्द्र! श्रीहरि की कृपा तथा जया एकादशी के व्रत के पुण्य से हमें पिशाच योनि से मुक्ति प्राप्त हुयी है” इन्द्र ने कहा – “हे माल्यवान! एकादशी व्रत करने से तथा भगवान श्रीहरि की कृपा से तुम लोग पिशाच योनि को त्यागकर पवित्र हो गये हो, इसीलिये हमारे लिये भी वन्दनीय हो, क्योंकि भगवान शिव तथा भगवान विष्णु के भक्त हम देवताओं के वन्दना करने योग्य हैं, अतः आप दोनों धन्य हैं. अब आप प्रसन्नतापूर्वक देवलोक में निवास कर सकते हैं.”

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