Ramadan 2025: रमजान का पहला रोजा है ईमान की पहल, इस्लाम में बताई गई है खासियत

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Ramadan 2025: हर साल चांद दिखने के साथ ही रमजान महीने की शुरुआत हो जाती है. इस साल भारत में रविवार 2 मार्च से रमजान की शुरुआत हुई है और आज मुसलमान ने पहला रोजा रखा है. माह-ए-रमजान का पहला रोजा रोजेदारों के लिए खास महत्व रखता है. इस दिन दुनिया में अमन चैन कायम रखने के लिए रोजेदार उपवास या रोजा रखते हैं और अल्लाह की प्रार्थना करते हैं. सामाजिक नजरिए से भी रोजा रखना इंसान की अच्छाई है.

हर धर्म में है उपवास की परंपरा

इस्लाम धर्म में इबादत के महीने रमजान में सूरज निकलने से कुछ वक्त पहले और सूरज अस्त होने तक खाना पीना वर्जित होता है. उपवास की इसी अवधि को रोजा कहा गया है. सुबह सेहरी के साथ रोजे की शुरुआत हो जाती है और इफ्तार के बाद रोजा मुकम्मल होता है. उपवास रखना वैसे सिर्फ मुस्लिम समुदाय ही नहीं बल्कि हर धर्म में प्रचलित है. जैसे सनातन धर्म में नवरात्रि का उपवास. जैन धर्म में पर्युषण पर्व का उपवास और ईसाई धर्म में फास्टिंग फेस्टिवल के रूप में हॉली फास्टिंग पर उपवास रखने का महत्व है. इसी तरह इस्लाम में रमजान के दौरान उपवास रखना भी कुछ इसी प्रकार से है.

संयम और सब्र सीख है रोजा

मुसलमानों के लिए रोजा का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि इस्लाम में इसे सुतून यानि स्तंभों में एक माना गया है जोकि हर मुसलमान पर फर्ज है. पवित्र कुरान (अल बकरह: 184) में अल्लाह का आदेश है कि ‘व अन तसूमू ख़यरुल्लकुम इन कुन्तुम त़अलमून’ यानी और रोजा रखना तुम्हारे लिए ज्यादा भला है अगर तुम जानो. अल्लाह के इस कथन जाहिर है कि रोजा आपके लिए भलाई का डाकिया है. अरबी जबान में रोजा को सौम या स्याम कहते हैं, जिसका हिंदी या संस्कृत अर्थ ‘संयम’ से होता है। यानी रोजा रोजेदारों को संयम और सब्र की सीख भी देता है.

रजमान के पहले रोजे का महत्व

रमजान के पूरे महीने में वैसे तो मुसलमान 29-30 दिनों का रोजा रखते हैं और हर दिन के रोजे का अपना विशेष महत्व होता है. आज रविवार 2 मार्च 2025 को मुसलमानों ने पहला रोजा रखा है. आइए जानते हैं पहला रोजा मुसलमानों के लिए क्या महत्व रखता है.

दरअसल पहला रोजा ‘ईमान की पहल’ है. इस दिन सुबह सहरी के बाद से दिन भर निराहार यानी भूखे-प्यासे रहकर सूर्यास्त के बाद ही इफ्तार करना होता है. लेकिन रोजा में केवल खाने-पीने या सोने को कंट्रोल करना या भूख-प्यास पर संयम रखना ही नहीं, बल्कि रोजा हर किस्म की बुराई पर संयम रखने का नाम है. यही कारण है कि गरीब से गरीब और अमीर से अमीर व्यक्ति को खुद ही रोजा रखना पड़ता है. व्यक्ति चाहे कितना भी धनी क्यों ना हो, वह धन खर्च करके किसी भी गरीब से रोजा नहीं रख सकता. मुस्लिम नजरिया से रोजा रूह की सफाई है, रोजा ईमान की गहराई है और वैज्ञानिक दृष्टि से भी रोजा को स्वास्थ्य के लिए मुनासिब बताया गया है.

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