कर्ण के साथ स्वर्ग में ऐसा क्या हुआ, जिस को छुआ वही सोना बन गया

Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष (Pitru Paksha) के महीने में हिंदू लोग अपने पितरों को याद करने के साथ तर्पण और पिंडदान करते हैं. पितृ पक्ष 16 दिनों तक चलता है. इस साल पितृपक्ष 17 सितंबर को शुरू हुआ था, जो 2 अक्टूबर तक चलेगा. पितृ पक्ष को लेकर अनेकों धार्मिक कहानियां प्रचलित है, लेकिन इन सबमें भी एक कहानी ऐसी भी है जिसका संबंध महाभारत (Mahabharat) काल से है. जी हां! अपने सही सुना पितृ पक्ष का कनेक्शन महाभारत काल से है. आइए जानते हैं इसके पीछे की कहानी. 

पितृ पक्ष का संबंध महाभारत काल से 
महाभारत एक हिंदू पौराणिक महाकाव्य है. जो आपको जीवन जीने का तरीका बताता है. महाभारत (Mahabharat) का एक महत्वपूर्ण पात्र कर्ण, जो था तो पांडवों का भाई, लेकिन महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ा था. चचेरों भाईयों के युद्ध में अर्जुन ने कर्ण (Karna) का वध कर दिया था. माना जाता है कि कर्ण दयालु ह्रदय का था. लोगों उन्हें दानवीर कर्ण कहकर पुकारते थे. महाभारत के युद्ध में जब कर्ण (Karna) की मृत्यु हुई और उनकी आत्मा स्वर्गलोक पहुंची तो, उस दौरान उन्हें भूख लगी. कर्ण जो कुछ भी स्पर्श करते वो सब कुछ सोने में बदल जाता. 

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अपने साथ हो रहे इन घटना को देखकर कर्ण घबरा गए और वो फौरन अपने पिता सूर्य देव के सामने इन घटनाओं का जिक्र करने लगे. कर्ण की ये दुविधा देखकर सूर्यदेव ने इसके हल के लिए इंद्र देव से मिलने की बात कही. इंद्र ने कहा भले ही कर्ण को दानवीर कर्ण के नाम से जाना जाता है, लेकिन कर्ण हमेशा जरूरतमंदों की मदद सोना देकर करता था. कर्ण ने कभी भी श्राद्ध के दौरान भोजन का दान नहीं किया. इसलिए कर्ण को उसके पूर्वजों ने श्राप दिया है. 

चूँकि कर्ण को अपने पूर्वजों के बारे में कुछ भी ज्ञात न होने के कारण उन्होंने कभी भी पूर्वजों के नाम पर श्राद्ध नहीं किया और न ही कभी उनके नाम पर जरूरतमंद लोगों को कुछ भी दान दिया. इसलिए कर्ण को अपनी गलती सुधारने के लिए 14 से 15 दिनों के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया. 

इसके बाद कर्ण पृथ्वी पर वापस आए और श्राद्ध के दौरान पूर्वजों को याद करते हुए जरूरतमंदों को भोजन और पानी का दान किया, जिससे कर्ण को अपनी गलती का पश्चाताप हुआ. इस अवधि को पितृ पक्ष के रूप में मनाया जाता है. 

युधिष्ठिर का संबंध भी महाभारत काल से है. 

माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में हजारों लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी, जिसके बाद मृतकों की आत्मा की शांति के लिए पांचों पांडवों में सबसे जैष्ठ युधिष्ठिर बोधगया आए थे. तब से ये स्थान पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध से जुड़ा हुआ है. बोधगया एक ऐसा पवित्र स्थान है, जहां अगर आप पितरों का पिंडदान करते हैं, तो आपके पितरों को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है. 

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