अयोध्या राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी महंत सत्येंद्र दास का लखनऊ के पीजीआई में इलाज के दौरान बुधवार को निधन हो गया. वे 85 वर्ष के थे. उन्होंने 20 वर्ष की आयु में संन्यास ले लिया था. 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद 1993 से वे लगातार राम मंदिर के मुख्य पुजारी के पद पर रहें. उन्होंने रामलला की सेवा टेंट वास से लेकर भव्य मंदिर निर्माण तक की. अयोध्या राम मंदिर निर्माण में भी उनकी अहम भूमिका रही. यही कारण है कि महंत सत्येंद्र दास के निधन के बाद देशभर और खासकर अयोध्या नगरी में शोक का माहौल है.
अयोध्या राम जन्मभूमि मंदिर के दिवंगत मुख्य पुजारी महंत सत्येंद्र दास आज गुरुवार को रामानंदी परंपरा से सरयू नदी में जल समाधि लेकर गोलोकवासी हो गए. जल समाधि से पहले उनके निवास स्थान से अंतिम यात्रा निकाली गई, जो हनुमानगढ़ी, राम जन्मभूमि के दर्शन करते हुए सरयू घाट तक गई. सरयू में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ उन्हें जल समाधि दी गई.
आमतौर पर हिंदू धर्म में जब किसी की मृत्यु होती है तो उसका दाह संस्कार किया जाता है. लेकिन साधु-संतों के अंतिम संस्कार के नियम और परंपराएं अलग होते हैं. यही कारण है कि मंहत सत्येंद दास का दाह संस्कार नहीं किया गया बल्कि उन्हें जल समाधि दी गई. आइए जानते हैं आखिर कैसे होता है हिंदू साधु-संत और संन्यासियों का अंतिम संस्कार.
संप्रदाय के अनुसार तय होता है अंतिम संस्कार
साधु-संतों का अंतिम संस्कार कैसे किया जाएगा, यह उनके संप्रदाय के अनुसार तय होता है. वैष्णव संतों में अधिकतर अग्नि संस्कार किया जाता है. वहीं संन्यासी परंपरा में अंतिम संस्कार तीन तरीकों से होता है, जिसमें दाह संस्कार, जल समाधि और भू-समाधि शामिल है. निर्वाण प्राप्त संन्यासी, नागा साधु, अखाड़ों के प्रमुख संत या ऐसे संन्यासी जो जीवनभर तपस्या में लीन रहें. उन्हें जल समाधि दी जाती है. इसके अलावा कई बार संन्यासी की अंतिम इच्छानुसार उनके देह को जंगल में भी छोड़ दिया जाता है.
जल समाधि कैसे होती है?
हिंदू धर्म के रामायण, महाभारत और अन्य पौराणिक ग्रंथों में साधु-संतों को जल समाधि देने का वर्णन मिलता है. संन्यासी परंपरा में जल या भू-समाधि की परिपाटी रही है और आमतौर पर साधु-संतों को जल समाधि ही दी जाती है. वृंदावन के प्रमुख संत देवरहा बाबा और अन्य कई संतों का अंतिम संस्कार जल समाधि से हुआ था. मंहत सत्येंद्र दास का अंतिम संस्कार भी जल समाधि परंपरा से हुआ. यह एक विशेष प्रकार की समाधि होती है, जिसमें साधु-संतों के पार्थिव शरीर को जल में प्रवाहित किया जाता है. धार्मिक मान्यतानुसार जल समाधि से आत्मा को शीघ्र मोक्ष प्राप्त होता है. इसका कारण यह है कि जल को पवित्र और शुद्ध करने वाला तत्व माना जाता है.
क्यों मृत्यु के बाद लेटी नहीं होती साधु-संतों का शव
साधु-संत या संन्यासियों का अंतिम संस्कार आमजनों की तुलना में अलग विधियों से होता है. आमतौर पर मृतक के शव को सीधा लिटाकर रख दिया जाता है और लिटाकर ही दाह संस्कार किया जाता है या दफनाया जाता है. लेकिन साधु-संन्यासियों के शव को समाधि वाली स्थिति में बिठाकर ही अंतिम विदाई दी जाती है. जिस मुद्रा में उन्हें बिठाया जाता है, उसे सिद्ध योग मुद्रा कहते हैं. आमतौर पर सभी साधु-संन्यासियों को इसी मुद्रा में समाधि दी जाती है. महंत सत्येंद्र दास की समाधि भी इसी तरह हुई.
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