Premanand Ji Maharaj Vachan: प्रेमानंद जी महाराज एक महान संत और विचारक हैं जो जीवन का सच्चा अर्थ समझाते और बताते हैं. प्रेमानंद जी के अनमोल विचार जीवन को सुधारने और संतुलन बनाएं रखने में मार्गदर्शन करते हैं.
प्रेमानंद जी महाराज का मानना है कि अपने स्वामी, अपने पिता को सुख और दुख दोनों में याद करना चाहिए. अगर हमारी जिंदगी में सुख हैं को समझे भगवान की दया, और दुख हैं तो समझें भगवान की कृपा है. हमारी किसी गलत कर्मों का दंड है जिसकी वजह से दुख का सामना करना पड़ता है. हमारा भगवान से कितना संबंध है यह हम सब का हद्वय जानता है. आप दुख में पहला स्मरण किसका करते हैं, आप सुख में पहला स्मरण किसका करते हैं उनका ही आश्रय माना जाएगा.
जैसे दौपदी जी का पहला आश्रय भगवान नहीं थे, उनके लिए पति थे, फिर भीष्म आदि थे, अपने हाथ थे, फिर दांत थे, फिर भगवान आए. यह शरणागति में कलंक है.
इसीलिए हम स्वार्थी शब्द का प्रयोग नहीं करते , हम मालिक शब्द कहते हैं. हम भगवान के बच्चे हैं वह हमारे पिता हैं, हम दास हैं वह हमारे स्वामी हैं. अगर हमे कोई समस्या होगी तो आप पिता से कहेंगे, या स्वामी से कहेंगे, हमें कोई जरुरत होगी तो भगवान से कहेंगे. अगर कोई आवश्यता और समस्या नहीं तो आपके हम हैं. निरंतर हम आपके भजन करते हैं. ऐसे भाव से जुड़ना चाहिए. ऐसा नहीं करना चाहिए की विपत्ति आए तो भगवान से जुड़ गए, पहले कभी भगवान का नाम जप नहीं किया, पुकारा नहीं. अब स्वार्थ में भगवान का नाम ले रहें. भगवान कहीं दूर नहीं हैं, भगवान हमारे हद्वय में हैं. हमारे भाव को देख रहे हैं. अगर आप भगवान को बिना किसी भक्ति के पुकारेंगे तो भगवान सुनेंगे नहीं. भाव बिन सुनी पुकारे मैं कभी सुनता नहीं। भाव पूरित टेर ही करती मुझे लाचार है.
हे कृष्ण ये द्वारकाधीश, दौपदी जी ने भाव से पुकारा तो भगवान वस्त्र बन गए. इसीलिए हम भगवान से निरंतर जुड़े रहने की चेष्टा करें. जब कोई मांग हो तो हम अपने भगवान से ही करें और छूट दे दें. अगर आपको उचित ना लगे तो हमारी प्रार्थना पूरी ना करें. तो प्रार्थना पूरी ना होने पर भी भगवान के प्रति हमारी श्रद्धा कम नहीं होती.
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