Holika dahan 2025: मान्यताओं के अनुसार, होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. इस बार होलिका दहन पर भद्रा काल रहेगा. सनातन धर्म में भद्रा काल के दौरान शुभ और मांगलिक काम करना मना है. जानिए इस साल होलिका दहन का सही समय और इसकी पूजा करने की विधि.
हिन्दू धर्म में त्योहार उत्साह और खुशी के साथ मनाए जाते हैं, जिनमें होली का एक विशेष महत्व है. पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस राजा था, जो अपने पुत्र प्रहलाद को भगवान विष्णु की पूजा करने से रोकता था. लेकिन प्रहलाद ने अपने पिता की बात नहीं मानी और भगवान विष्णु की पूजा करता रहा. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका थी, जो एक शक्तिशाली राक्षसी थी. हिरण्यकश्यप ने होलिका से कहा कि वह प्रहलाद को आग में जला दे. होलिका ने अपने भाई की बात मान ली और प्रहलाद को आग में जलाने की कोशिश की, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका आग में जल गई. इसी दिन से लकड़ियों का ढेर जलाकर होलिका दहन किया जाता है. आइए जानते हैं, इस साल होलिका दहन का समय और विधि.
होलिका दहन का समय
इस साल 13 मार्च, गुरुवार की रात होलिका दहन किया जाएगा. होलिका दहन के दिन भद्रा काल लगने वाला है.भद्रा का समय 13 मार्च सुबह 10:35 बजे से रात 11:29 बजे तक है.सूर्यास्त के बाद शाम में होलिका दहन किया जाता है, लेकिन भद्रा का साया होने के चलते होलिका दहन 13 मार्च रात 11:30 बजे के बाद ही किया जाएगा.
होलिका दहन की विधि:
होलिका दहन से कुछ दिन पहले गली के चौराहे में लकड़ियां और कंडे जमा कर होलिका का ढेर बनाया जाता है, जिसे होलिका दहन के दिन जलाया जाता है.
होलिका के चारों ओर कच्चा सूत लपेटते हुए परिक्रमा की जाती है.
फिर होलिका पर रोली, चावल, तिलक, घी और मिठाई चढ़ाई जाती है.
लोटे में शुद्ध जल भरकर होलिका की परिक्रमा की जाती है.
इसके बाद होलिका जलाई जाती है और आहुति में नारियल, भुट्टे और नई फसल चढ़ाई जाती है.
होलिका की अग्नि में गुलाल, फूल, गेहूं की बालियां और बताशे भी डाले जाते हैं.
होलिका प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ गई, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गया और होलिका आग में जल गई. इसका संदेश है कि बुराई पर अच्छाई की जीत होती है. यह त्योहार हमें अपनी बुराई के खिलाफ लड़ने, सच्चाई और न्याय के लिए खड़े रहने के लिए प्रेरित करता है.
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