Premanand Ji Maharaj: होश में आए हुए मन की क्या पहचान है, प्रेमानंद जी महाराज से जानें उनके विचार

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Premanand Ji Maharaj Vachan: प्रेमानंद जी महाराज एक महान संत और विचारक हैं जो जीवन का सच्चा अर्थ समझाते और बताते हैं. प्रेमानंद जी के अनमोल विचार जीवन को सुधारने और संतुलन बनाएं रखने में मार्गदर्शन करते हैं.

प्रेमानंद जी महाराज से जानते हैं उस पंक्ति के बारे में जो श्री गुरु ग्रंथ साहिबजी से उद्धृत की गयी है  “मन तू जोत सरूप है अपना मूल पछान” क्या अर्थ है इस पंक्ति का, इसका तात्पर्य है तेज स्वरुप, ब्रह्म तेज से, परमात्मा का तेज है. भगवान श्री कृष्ण कहते हैं इंद्रियों का मन में है, और भगवान परम तेजस्वी हैं यहां संकेत गुरुवाणी कर रही है, कि तू तेज स्वरुप है व्यर्थ में, विषयों में गंदा हो रहा है अपने तेज को पहचान जो तू भोगों में भटक रहा है ये जो तेरी दुर्दशा हो रही है यह तेरे को अपने को ना पहचानने की वजह से हो रही है.

हे मन तू अपने को पहचान, तू तेज स्वरुप  किसी सुख की आकंक्षा बाहर से मत कर, अपने स्वरुप को पहचान.  जब हम गुरु की वाणी का जाप करेंगे, या पाठ करेंगे या गुरु के द्वारा दिए गए मंत्र का जप करेंगे तो हमारा मन अपने आप निर्मल और शांत हो जाएगा.निर्मल और शांत  मन परमात्मा का स्वरुप है, मलिन और चंचल मन को कामनाएं सताती हैं. संसार का भोग दिखाती हैं, यह कर लें, यह जी लें. हमे चाहिए की गुरुमुख का नाम ले, गुरुवाणी का पाठ करें. मन को जाग्रत करें, जो मन अविद्या में सो रहा है उसे जगाने की कोशिश करें. जगा हुआ मन परामात्मा में लगता है और सोया हुआ मन संसार में लगता है. तेजस्व स्वरुप मन है.

Premanand Ji Maharaj: आत्मज्ञान की प्राप्ति कैसे हो, जानें प्रेमानंद जी महाराज से उनके अनमोल वचन

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