अमरेकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से लगाए गए दुनियाभर के देशों पर टैरिफ का सीधा असर वॉल स्ट्रीट पर दिखा, जहां गुरुवार को जबरदस्त विकवाली दिखी. ट्रंप के इस फैसले से ट्रेड वॉर और आर्थिक मंदी के संकट का खतरा अब मंडराने लगे हैं. इसका सबसे बुरा असर खुद अमेरिकी शेयर बाजारों पर हुआ. वैश्विक वित्त बाजार में चिंताओं के बीच कोविड-19 के बाद ऐसे पहली बार हुआ जब अमरेकी शेयर बाजार का ये हाल हुआ है.
एक तरफ जहां S&P 500 इंडेक्स करीब 4.8% गिर गया, जो जून 2020 के बाद एक दिन में इतनी बड़ी गिरावट है. इस गिरावट से बाजार को करीब 2.4 ट्रिलियन डॉलर यानी 200 लाख करोड़ का नुकसान हुआ है.
इसके अलावा, डाउ जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज और नैस्डक कंपोजिट भी वही गिरवट देखी गई, जो कोरोना महामारी के वक्त 2020 में देखी गई थी. डॉउ जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज में 4% 1679 अंक और नैस्डेक कंपोजिट में 6% की गिरावट हुई.
लड़खड़ाया वॉल स्ट्रीट
टैरिफ के बाद कमजोर आर्थिक रफ्तार और महंगाई के आशंका के बीच वॉल स्ट्रीट लड़खड़ाता हुआ नजर आया. बड़ी टेक कंपनियों और क्रूड ऑयल के लेकर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले में अन्य करेंसी तक, सभी में गिरावट का दौर जारी रहा. एसोसिएटेड प्रेस के मुताबिक, हालांकि सोना की कीमत में इजाफा हुआ और निवेशकों को इसमें पैसा लगाना सबसे बेहतर लगा.
हालांकि, ये जरूर था कि वैश्विक निवेशक ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ की घोषणा के पूरी तरह से भलीभांति वाकिफ थे. इसलिए S&P 500 इंडेक्स की सेहत पर इसका साफ असर दिखा और इसमें रिकॉर्ड 10% की गिरावट दर्ज हुई.
सेंचुरी वेल्थ में चीफ इन्वेस्टमेंट ऑफिसर मैरी एन बार्टल्स ने कहा कि ये गौर करने वाली बात है कि इन हालातों के बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति ने टैरिफ से गंभीर स्थिति पैदा करते हैरान कर दिया है. ट्रंप ने दुनिया के सभी देशों पर अमेरिका में आयातित सामानों पर कम से कम 10% का टैरिफ लगाया है. जबकि, चीन, यूरोपीय यूनियन, भारत और कंबोडिया समेत कई अन्य देशों के लिए ये टैरिफ की दरें बहुत ज्यादा है.
मंदी की आहट
एक्सपर्ट्स लगातार इस बात की आशंका जता रहे हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप के इस कदम से दुनियाभर में मंदी छा सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर कोई देश प्रोडक्शन करेगा और अमेरिका एक्सपोर्ट करने पर वो सामान महंगा होगा, तो फिर उसकी डिमांड कम हो जाएगी. अमेरिका के टैरिफ के जवाब में दुनियाभर के दूसरे देश भी टैरिफ लगाएंगे. ऐसे में न सिर्फ उन सामानों का प्रोडक्शन रुकेगा, बल्कि महंगाई बढ़ जाएगी, मंदी आएगी और बेरोजगारी बढ़ जाएगी.